غزل
حائل نہ راہ میں کوئی خانہ خراب ہو
میری دعا ہے تیرا سفر کامیاب ہو
جس نے ہماری زیست کو روشن سدا کیا
تم ایسا اک چمکتا ہوا آفتاب ہو
لب ہیں تمہارے گویا کہ کلیاں کھلی ہوئیں
آنکھیں تمہاری جام میں جیسے شراب ہو
کوشش کے باوجود نہ ہم پڑھ سکے کبھی
ویسے تو تم کھلی ہوئی کوئی کتاب ہو
نکہت بسی ہے پھولوں میں تیرے وجود سے
نغمے بکھیرتا ہوا تم اک رباب ہو
نظروں میں ہے تمہاری ہی صورت بسی ہوئی
زیر نقاب دھکے بھی تم بے حجاب ہو
زلفیں تمہاری جیسے کہ ساون کی ہو گھٹا
عارض تمہارے جیسے کہ کوئی گلاب ہو
سلیمان صدیقی
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Urdu Ghazal by Suleman Siddiqui |
ग़ज़ल
हाइल न राह में कोई ख़ाना-ख़राब हो
मेरी दुआ है तेरा सफ़र कामयाब हो
जिस ने हमारी ज़ीस्त को रौशन सदा किया
तुम ऐसा इक चमकता हुआ आफ़ताब हो
लब हैं तुम्हारे गोया कि कलियाँ खिली हुईं
आँखें तुम्हारी जाम में जैसे शराब हो
कोशिश के बावजूद न हम पढ़ सके कभी
वैसे तो तुम खुली हुई कोई किताब हो
ज़ुल्फ़ें तुम्हारी जैसे कि सावन की हो घटा
आरिज़ तुम्हारे जैसे कि कोई गुलाब हो
सुलेमान सिद्दीक़ी
हाइल न राह में कोई ख़ाना-ख़राब हो
मेरी दुआ है तेरा सफ़र कामयाब हो
जिस ने हमारी ज़ीस्त को रौशन सदा किया
तुम ऐसा इक चमकता हुआ आफ़ताब हो
लब हैं तुम्हारे गोया कि कलियाँ खिली हुईं
आँखें तुम्हारी जाम में जैसे शराब हो
कोशिश के बावजूद न हम पढ़ सके कभी
वैसे तो तुम खुली हुई कोई किताब हो
ज़ुल्फ़ें तुम्हारी जैसे कि सावन की हो घटा
आरिज़ तुम्हारे जैसे कि कोई गुलाब हो
सुलेमान सिद्दीक़ी
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